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चलती -फिरती जेल है बुर्क़ा जिसका इस्लाम में कोई ज़िक्र ही नहीं – डॉ. शाज़िया नवाज़

क्या मुसलमानों को फ्रांस से बुर्क़े पर रोक लगाने की मांग करने का अधिकार है जबकि पश्चिम की महिलाओं को कम कपड़े में मुस्लिम देशों में सार्वजनिक स्थानों पर या घर से बाहर निकलकर घूमने की अनुमति नहीं है !आप आशा कर रहे हैं कि वे आपकी संस्कृति का सम्मान करें और जब वे आपके देश में आएं तब भी और जब आप उनके यहां जाए तब भी। लेकिन आप उनकी संस्कृति का सम्मान पाकिस्तान में नहीं करते हैं और यदि आपका वश चले तो उनके देश में भी नहीं होने दे सकते – इतना दोगलापन !

ये अब ख़तरनाक दुनिया हो गई है। व्यक्ति यदि आपादमस्तक परदे में हो तो वह भी सुरक्षा के लिए ख़तरा हो सकता है। आपको पता ही नहीं परदे में कौन है। इस्लाम केवल ये कहता है कि महिला (औरत शब्द इसलिए नहीं लिखूंगी कि अरबी में इसका अर्थ ” महिला की योनि ” होता है और यह यह आम चलन में उनका ही दिया हुआ शब्द है ) ऐसे कपड़े पहने कि उच्चश्रृंखल न दिखें। फिर यह बुर्क़ा आया कहाँ से ?

हम सभी जानते हैं कि बुर्क़े का सम्प्रदाय या मज़हब से कोई लेना- देना नहीं। इस्लाम केवल ये कहता है कि महिला (औरत शब्द इसलिए नहीं लिखूंगी कि अरबी में इसका अर्थ ” महिला की योनि ” होता है और यह उनका ही दिया शब्द है )ऐसे कपड़े न पहनें कि उच्छृंखल दिखें। फिर बुर्क़ा आया कहा से? दुनिया भर में महिलाएं अपने चेहरे को ढंकती क्यों हैं? बुर्क़ा पुरुष द्वारा खोजी गई चलती -फिरती जेल है जिसके अंदर वह उस स्त्री को रखता है जिससे वह प्यार करता है।पर क्या सच में ऐसा है ? अगर इसमें मोहब्बत होती तो मैं इसे शायद मंज़ूर कर लेती। उस सूरतेहाल में यह जेल स्त्री को किसी दूसरे मायने में ज्यादा स्वीकार्य होती। लेकिन तब फिर प्रश्न होता कि किस स्वभाव का पुरुष उस महिला को जेल में रखेगा जिसे वह प्यार करता है। ऐसे में बुर्क़ा उस तरह की जेल अधिक है जिसमें पुरुष ‘अपनी स्त्री’ को गिरफ़्त या क़ैद में रखता है उसमें प्रेम सिर्फ बहाना है, सच्चाई नहीं ।

मुस्लिम परिवारों में महिला के ब्रेनवाश की प्रक्रिया बचपन में ही शुरू हो जाती है। छुटपन में ही उसे बताया जाता है कि तुम्हें स्वयं को पुरुषों से छिपाना है। तुम्हारा चेहरा छुपाकर रखना ‘धर्म’ है। महिला को पुरुषों से भयभीत रहना भी सिखाया जाता है। बहुत कम आयु में ही महिला को बताया जाता है कि पुरुष ख़तरनाक़ होते हैं उन पर ऐतबार नहीं किया जा सकता। स्त्री से कहा जाता है, तुम केवल अपने पिता और भाई पर ऐतबार कर सकती हो क्योंकि पुरुष आपको सहजता से फुसला सकता है। पाकिस्तान में तो महिलाओं को बताया जाता है ‘पुरुष भेड़िया यानी कामुक और क्रूर होता है जबकि महिला भेड़ या सीधी-सादी होती है।‘ इस नसीहत के चलते ही ज्यादतर पुरुष भेड़िये की तरह व्यवहार करने लगते हैं और महिला सहमी -सिकुड़ी -सितम सहनेवाली भेड़ बन जाती है।

हमारे पुरुष कहते हैं कि महिलाओं को परदा करना चाहिए जबकि हम महिलाओं के पास पुरुष के लिए किसी तरह का विचार या नज़रिया नहीं होता। ये विचार महिलाओं को हानि पहुंचाने और उनके साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करने का होता है। इसलिए वे (पुरुष) हमें (महिलाओं को ) जेल में रखना चाहते हैं ताकि हमें लेकर उनका दिमाग़ साफ़ रहे। यह तो तोड़ा-मरोड़ा हुआ तर्क है। लेकिन क्या यक़ीनन उनका ये विचार यहां रुक जाता है? क्या बुर्क़े में ढंकी महिला को कोई नहीं छेड़ता ? हक़ीक़त की दुनिया में छिछोरों को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है कि आप बुर्क़े में हैं ( या बिकनी में ), वे आपको सतायेंगे ही। मेरा अनुभव बताता है कि चेहरे पर परदा सड़कों-गलियों में होने वाली छेड़छाड़ या छींटाकशी से मेरी कभी बचा नहीं पाता।

पाकिस्तान से छोटे शहरों में घर से निकलने पर हमेशा या मेरे पिता या मेरे भाई साथ होते हैं , अन्यथा गलियों से अकेले गुज़रते समय हमारे जिस्म पर चाहे जितने कपड़े हों, पुरुष चिल्लाएंगे, छींटाकशी करेंगे, पीछा करेंगे और हमारे जिस्म को छूने की कोशिश करेंगे। इसी के चलते महिला अपने घर से अकेली नहीं निकल सकती और उसके साथ हमेशा घर का कोई पुरुष रहता है। पाकिस्तान और दूसरे मुस्लिम देशों में पुरुष अपने घर की महिलाओं की दूसरों से हिफ़ाज़त करते हैं। लाहौर जैसे पाकिस्तान के बड़े शहरों में माहौल अलग होता है, आप यकीन करें या न करें वहां महिलाओं को यौन-शोषण जैसी समस्या से अपेक्षाकृत कम जूझना पड़ता है। यहां हमारे आसपास के पुरुष सिर न ढंकने और परदा न करने वाली महिलाओं की संगत के अभ्यस्त होते हैं।इसका कारण यह है कि पुरुष अधिक शिक्षित होते हैं इसलिए उनकी बहन और मां ज़्यादा स्वतंत्र या अधिकार संपन्न होती हैं।

आइए, अब बात करते हैं अमेरिका की, जी हां, यहां तो गलियों में पुरुष का व्यवहार विस्मयकारी अनुभव है। मैं जो चाहूं पहन कर आसपास जा सकती हूं। किसी की क्या मजाल की बुरी नज़र भी डाले। इससे मेरी समझ में आया कि बुर्क़ा ख़तरनाक़ पुरुषों को हमसे दूर नहीं रखती, बल्कि यह समाज समझ है जो हानिकारक लोगों को हमसे दूर रख सकता है या रखता है।विशेषकर क़ानून का कठोरता से पालन का परिणाम है जो किसी देश में स्त्री को सुरक्षित अनुभव कराता या रखता है। हवाई के खूबसूरत बीच पर मस्ती भरी ठंड हवाओं के सुखद स्पर्श का मेरा पहला अनुभव रोमांचकारी रहा वरना पुरुष ने बुर्क़ा कहे जाने वाले शामियाने में रखकर स्त्री से खुशनुमा मौसम को इंजॉय करने का उसका बुनियादी हक़ ही लूट लिया है। बुर्क़े के भीतर अंधेरा होता है, गर्मी होती है, स्त्री को पुरुष ने वहां केवल इसलिए ढकेल दिया है कि स्त्री के बारे में उसके पास कोई विचार नहीं है तो वो बुर्क़े के भीतर घुटती रहे।किसी सभ्य देश में अगर सामने वाले की सहमति के बग़ैर आपने अपने विचार उस पर थोपने की कोशिश की तो आप 10-20 साल के लिए जेल भेज दिए जाएंगे।

दबाए हुए समाज के पुरुष के लिए ये समझना बड़ा मुश्किल है कि खुले समाज के पुरुष वास्तव में अपने विचार पर अंकुश लगाना सीख गए हैं और उसके लिए वे औरतों पर दोषारोपण नहीं करते। जब फ्रांस में बुर्क़े पर रोक की बात आती हैं, जहां यह तर्क दिया जाता है कि महिला जो चाहे उसे पहनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए और ये स्वतंत्रता काम नहीं करती… हर समाज में ड्रेसकोड और स्वतंत्रता की एक सीमा है। आपकी स्वतंत्रता वहीं समाप्त हो जाती है जहां से हमारा रास्ता शुरू होता है। नंगेपन के पैरोकार अकसर कहते हैं कि सड़क पर बिना कपड़े के घूमना उनका अधिकार और मौलिक अधिकार या स्वतंत्रता है जो पूरी होनी चाहिए। स्पष्ट है उन्हें उन्हें इसकीअनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि इससे दूसरे समाज में अव्यवस्था फैलने का खतरा बढ़ेगा । इसी तरह एक व्यक्ति यदि आपादमस्तक परदे में हो तो वह भी सुरक्षा के लिए ख़तरा हो सकता है। आपको पता ही नहीं परदे में कौन है। ये अब ख़तरनाक दुनिया हो गई है। आप अपने बच्चे को पार्क में खेलने की इजाज़त नही दे सकते जहां सिर से पांव तक बुर्क़े में ढंके लोग बैठे हैं। क्या मुसलमानों को फ्रांस से बुर्क़े पर रोक लगाने की मांग करने का अधिकार है जबकि पश्चिम की महिलाओं को कम कपड़े में मुस्लिम देशों में ,विशेषकर पाकिस्तान में सार्वजनिक स्थानों या घर से बाहर घूमने की अनुमति नहीं है !आप आशा कर रहे हैं कि वे आपकी संस्कृति का सम्मान करें और जब वे आपके देश में आए तब भी और जब आप उनके यहां जाए तब भी लेकिन आप उनकी संस्कृति का सम्मान तो अपने देश में नहीं करते हैं और यदि आपका वश चले तो उनके देश में भी नहीं होने दे सकते – ऐसा कैसे ?

  • डॉ शाज़िया नवाज़ पाकिस्तान की प्रमुख लेखिका हैं। वर्ष 2011 में फ़्रांस सरकार ने बुर्क़े पर रोक लगाया तो पाकिस्तान में छिड़ी बहस में हस्तक्षेप करते हुए उन्होंने बुरक़े पर एक अंग्रेजी में लेख लिखा था।उसी लेख का यह हिंदी अनुवाद है।
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