Opinion

सरकारी फाइलों में भाग्यनगर कहलानेवाले हैदराबाद को, अब भी अपने पुराने नाम के लिए तरसना क्यों पड़ रहा है

पोस्टल विभाग , रेलवे , गेल इण्डिया के साथ -साथ कांग्रेसी सरकार में केंद्रीय श्रम मंत्री रहे टी अंजैया द्वारा अपने मुख़्यमंत्रित्व काल में उद्घाटित भाग्यनगर शहरी विकास प्राधिकरण जैसे अनेक प्रमाणको में हैदराबाद की जगह भाग्यनगर नाम दशकों से प्रयुक्त हो रहा है फिर भी तेलंगाना सरकार हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर नहीं कर रही है यह अचरज की बात है। असदुद्दीन ओवैशी के समर्थन से चुनकर आये मेयर और उप मेयर व्यक्ति विशेष की खुशी के लिए स्थानीय अस्मिता को हाशिये पर डाल रहे हैं यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है।

हैदराबाद के नाम को बदलकर पुनः भाग्यनगर करने की मांग बढ़ने लगी है। पिछले वर्ष स्थानीय निकायों के चुनाव में यह बात उत्तरप्रदेश से आये प्रमुख प्रचारक मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उठायी थी। इन दिनों भाजपा के विधायक टी राजा सिंह ने इस मांग को लेकर सड़क से विधानसभा तक अभियान शुरू कर दिया है। नगरनिगम में अपेक्षित पार्षदों की संख्या नहीं होने के बादभी विधायक टी राजा सिंह को आशा है कि जनमत के दवाब में हैदराबाद का नाम शीघ्र ही भाग्यनगर करना पड़ेगा।

यद्यपि स्थानीय सांसद असदुद्दीन ओबैसी ने हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर किये जाने का विरोध किया है और कहा है कि नाम बदलने से स्थितियां नहीं बदल जायेंगीं तथापि भाजपा सांसद डॉक्टर सुब्रहमनियन स्वामी ने ओबैसी की बात को काटते हुए इंडोनेशिया का उदाहरण दिया और कहा कि गणेश समेत विभिन्न देवताओं और देवियों का चित्र अपनी मुद्रा पर जबसे इंडोनेशिया ने छापना शुरू किया तबसे उसकी मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में गिरना रुक गया है। इसलिए संभव है कि जब इस नगर का नाम भाग्यनगर हो जायेगा तो इसके भाग्य भी खुल जायेंगे क्योंकि हर नाम का अपना संस्कार और प्रभाव भी होता है। डॉ स्वामी के इस विषय में हस्तक्षेप ने युवाओं को उत्साहित कर दिया है और अधिकाँश लोग पुराने नाम की पुनर्स्थापना के पक्ष में बात करने लगे हैं।

उल्लेखनीय है कि लगभग ४५० वर्ष पहले इस नगर का नाम भाग्यनगर ही था और यहाँ के लोग अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान और संस्थान भी इस नाम पर सदियों से चलाते आ रहे हैं। भाजपा द्वारा स्थानीय अस्मिता का विषय उछाले जाने से यह मामला धीरे -धीरे प्रमुखता से चर्चा में आ रहा है लेकिन निकट भविष्य में नामांतरण की संभावना नहीं दिखती क्योंकि नगरनिगम में बहुमत भाजपा के पक्ष में नहीं है । वैधानिक आधार पर अगर देखें तो १५० पार्षदों वाले हैदराबाद नगर निगम में भाजपा के मात्र ४८ पार्षद हैं और दो निर्दलीयों का समर्थन उसको मिल सकता है किन्तु तेलंगाना राष्ट्र समिति को अपना मेयर और उपमेयर चुनवाने में ओवैशी की पार्टी के पार्षदों का समर्थन लेना पड़ा था। वैसे भी सदन में भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के बादभी अपना दावा उप मेयर के लिए नहीं रख सकी क्योंकि तीसरे नंबर पर चुनकर आयी ओवैशी की पार्टी ने तेलंगाना राष्ट्र समिति को समर्थन देकर भाजपा की अप्रत्याशित जीत के प्रभाव को कम करने की कोशिश की ।

तेलंगाना राष्ट्रीय समिति और एम् आई एम् ने एक दूसरे के विरुद्ध नगर निगम का चुनाव लड़ा जिसमें तेलंगाना राष्ट्रीय समिति की सीट ९९ से घटकर ५५ हो गयी और एम् आई एम् बड़ी कठिनाई से अपनी ४४ सीटें यथावत बनाये रख सकी। भाजपा के पार्षदों की संख्या ४ से बढ़कर ४८ हो गयी है। स्थानीय निकाय में भाजपा की इस जीत ने एम् आई एम् के नेता और सांसद असद्दुदीन ओवैशी को चिंता में डाल दिया। इसलिए उन्होने तेलंगाना राष्ट्रीय समिति से चुनाव बाद समझौता करके भाजपा को उप मेयर की दावेदारी से वंचित कर दिया । ओवैशी क्योंकि हैदराबाद का नाम बदलने के पक्ष में नहीं हैं यह संभावना बहुत ही कम है कि वर्तमान नगरनिगम इसकी अनुशंसा राज्य सरकार को भेजेगा। २२४ सीटोंवाली राज्य विधानसभा में भी भाजपा के विधायकों की संख्या १२१ ही है।

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