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प्राचीन भारत के विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक:- भाग 7

विशेष माहिती श्रृंखला – (7-7)

-समारोप:

अंग्रेजी विश्वकोश ‘एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका’ ( 17, पृ. 626) में डॉ. बूलर ने लिखा है कि शून्य की योजना कर वर्तमान में प्रचलित नौ अंकों की सृष्टि भारत में ही हुई थी। वहां से इसे अरबों ने और फिर यूरोपीय देशों ने सीखा। इससे पहले कैल्डियन, हिब्रू, ग्रीक, अरब आदि जातियां वर्णमाला के अक्षरों से अंकों का काम लेती थीं। अलबरूनी ने लिखा है- अरब के लोग अंक-क्रम में एक हजार तक ही जानते हैं, जबकि भारतीय अपने संख्या सूचक क्रम को 18वें स्थान तक ले जाते हैं, जिसको परार्द्ध कहते हैं। इसी तरह अलबरुनीज इंडिया (पृ. 174-77) में लिखा है कि अंकगणित की तरह बीजगणित भी भारतवर्ष से ही पहले अरब और फिर यूरोप में गया।

प्रो. मोनियर विलियम्स कहते हैं कि बीजगणित और ज्यामिति तथा खगोल शास्त्र भारतीयों ने ही आविष्कृत किया। मूसा और याकूब ने भारतीय बीजगणित का प्रचार अरब में किया था। भले ही आज दुनिया भर में यूनानी ज्यमितिशास्त्री पाइथागोरस और यूक्लिड के सिद्धांत पढ़ाए जाते हैं, लेकिन यह जानना दिलचस्प होगा कि भारत प्राचीन गणितज्ञ बोधायन ने पाइथागोरस के सिद्धांत से पहले यानी 800 ईसा पूर्व शुल्ब तथा श्रौत सूत्र की रचना कर रेखागणित व ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज की थी। उस समय भारत में रेखागणित, ज्यामिति या त्रिकोणमिति को शुल्ब शास्त्र कहा जाता था। प्राचीन साक्ष्य बताते हैं कि शुल्ब शास्त्र के आधार पर विविध आकार प्रकार की यज्ञवेदियां बनाई जाती थीं।

1857 के विद्रोह ने ब्रिटिश शासकों की आंखें खोल दी तथा उन्हें यह लगने लगा कि विदेशी लोगों पर शासन कैसे किया जाए उन्हें उनके रीति रिवाज, सामाजिक व्यवस्थाओं को गहन अध्ययन करके उनकी दुर्बलताओं को जानने की आवश्यकता पड़ी और इसी क्रम में क्रिश्चियन मिशनों के धर्म प्रचारकों ने भी हिंदू धर्म की दुर्बलताओं को जानना आवश्यक समझा ताकि धर्म परिवर्तन करा सके और इसी के कारण ब्रिटिश साम्राज्य को मजबूत मिली इसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए मैक्स मूलर के संपादकत्व में विशाल मात्रा में प्राचीन धर्म ग्रंथों का अनुवाद किया गया यह अनुवाद सेक्रेल बुक्स ऑफ द ईस्ट सीरीज में कुल मिलाकर 50 खण्डों में किया गया और इसके कई खंडों के भाग भी प्रकाशित हुए इस सीरीज में कुछ चीनी और ईरानी ग्रंथ भी शामिल किए गए।

प्राचीन भारतीय संस्कृति की समृद्ध परंपरा प्राचीन समाजों, जैसे कि महाकाव्य समाज और वैदिक परंपरा से जुड़ी हुई है। आज के युग में जिन प्रथाओं, रीति-रिवाजों और मान्यताओं का पालन किया जाता है, वे प्राचीन भारतीय संस्कृतियों का हीं परिणाम हैं। अस्तित्व के,संघर्षो के बावजूद, भारतीय लोकाचार का आधार अप्रभावित रहा।

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