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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान:भाग 5

विशेष माहिती श्रृंखला : भाग 5 (5-30)

प्राचीन भारत की वास्तुकला;

‘हिस्ट्री आफ इंडियन एंड ईस्टर्न आर्किटेक्चर’ नामक अपनी पुस्तक की भूमिका में जेम्स फर्गुसन ने कहा है की:

‘भारत में वास्तुकला अभी तक एक जीवित कला है। इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर बारहवी व तेरहवीं सदी में यूरोप में इसका तीव्र विकास हुआ। वास्तुकला का विद्यार्थी कार्यरूप में परिणित कला के वास्तविक सिद्धांतों की एक झलक केवल इन्हीं में देख सकता है। आज यूरोप में वास्तुकला को अत्यधिक असंगत व असामान्य तरीके से व्यवहार में लाया जा रहा है।

आज बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इस गलत धारणा को छोड़कर यह समझ सके है कि भव्य भवन निर्माण के सिद्धांतों एवं साधारण विवेक का सही संगम हो सकता है और इसके परिणाम अवश्य संतोषजनक ही होंगे। जिन्हें भारतीयों द्वारा निर्मित उत्तम भवनों को देखने का अवसर मिला होगा वे इस सफलता के रहस्य को भलीभांति समझ सकते हैं। जिन्होंने यूरोप के शिक्षित व प्रतिभाशाली वास्तुकारों की गलतियां और असफलतायें देखी होंगी, वे भारतीय प्रतिरूपों के अध्ययन से अन्दाजा लगा सकते हैं कि ऐसे परिणाम अवश्यंभावी थे।

‘वास्तुकला सभ्यता का आधार है। इस परिभाषा में यह जोड़ देना आवश्यक है कि ऐतिहासिक दृष्टि से, वास्तुकला उस काल की सभ्यता के बौद्धिक विकास का एक स्थायी ठोस और स्पष्ट साक्ष्य है। भारत के अनेक भव्य स्मारकों के रूप में मनुष्य के आदर्शों की जो अभिव्यक्ति देखने को मिलती है ऐसी समृद्ध वास्तुकला विरासत शायद ही किसी अन्य देश को मिली हो। भारतीय वास्तुकला का विशेष गुण इसका आध्यात्मिक पक्ष है। यह स्पष्ट है कि निर्माण कला का मुख्य उद्देश्य उस काल में प्रचलित धार्मिक चेतना को दर्शाना था। इस कला में अपने मनोभावों को शैल इंट व पत्थर के माध्यम से जीवत किया गया है।

इतिहास के आरंभ से ही प्राचीन भारत में वास्तुकला की संकल्पना मानव प्रयास की एक अभिव्यक्ति के रूप में उभरी है। इस का सैनिक व्यवस्था (किला, खंदक व सुरक्षित बच निकलने के मार्ग निर्माण), नगर नियोजन, गोदी निर्माण, जल,संग्रहण व वितरण एवं मल-मूत्र निपटान व्यवस्था आदि विभिन्न शाखाओं में उत्तरोत्तर विकास हुआ है।

वास्तुकला पर प्राचीन भारत का ‘मानसार’ नामक ग्रंथ इस का उदाहरण है। इसमें राजा की राजधानी में महल निर्माण व उससे लगे हुये भवनों का विवरण है जिनकी सुरक्षा हेतु खाइयों से घिरे किले को दिखाया गया है। सभा मंडप, राजसभा, अंतःपुर, अस्तबल, शस्त्रागार,पैदल सेना तथा अश्वारोही सेना के लिये निवास स्थान, त्रागार, जल-संग्रहण स्थान एवं सुरक्षित बच निकलने के मार्ग आदि की व्यवस्था भी इस संकुल में दिखायी गयी है।

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