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ये ‘तथाकथित सेलिब्रिटीज’ इतने बेलगाम क्यों हैं ?

फिल्म अभिनेता रणवीर सिंह का न्यूड फोटो शूट काफी आपत्तिजनक है ,लेकिन फिल्मवालों को उसमें कला और अभिव्यक्ति की आज़ादी दिखती है जबकि मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भी कहा कि इस तरह के फोटो शूट से समाज में मानसिक प्रदूषण फैलता है।इसी तरह नसीरुद्दीन शाह की पत्नी अभिनेत्री रत्ना पाठक ने अनावश्यक रूप से ‘करवा चौथ’ को ‘रूढ़िवादी और महिलाओं को पिछड़ा बनाये रखने की व्यवस्था’ बताकर आत्मप्रचार के लिए हिंदुत्व पर हमला किया है लेकिन हिजाब – तीन तलाक -हलाला जैसी हलकान करनेवाली ‘मुसलमानों की पाशविक परम्परा’ पर उनको कुछ नहीं कहना है।

राजेश झा

‘राष्ट्रीय कलंक’ के रूप में निरूपित किये जाने योग्य फिल्मकार (कु)प्रकाश झा ‘आश्रम’ जैसी वेब सीरीज बनाता है जिससे हिन्दू साधू -महात्मा की छवि दूषित कर हिंदुत्व को निर्बल किया जा सके किन्तु सर्वोच्च न्यायालय तक को हत्प्रभ करने वाले अजमेर के चिश्ती -परिवार द्वारा वर्षों तक २५० से अधिक बच्चियों -किशोरियों -महिलाओं का सामूहिक बलात्कार किये जाने की प्रामाणिक घटना पर फिल्म या वेब सीरीज बनाने को कहने पर उन्हें सांप सूंघ जाता है।

करण जौहर जैसे लोग ‘कॉफी विथ करण’ नामक टेलीविजन शोज में यौन-संबंधों,शयनकक्ष की नितांत व्यक्तिगत बातों को सार्वजनिक मंच पर ला परोक्ष और प्रत्यक्ष दोनों तरीकों से परिवारों तक पहुंचाकर उसके बचे -खुचे ताना-बाना को तोड़ने में लगातार लगे हैं। इसमें अनुराग कश्यप जैसे मानसिक विकलांग फिल्मकार द्वारा अपनी पहली पत्नी से जन्मी बेटी के साथ उसके ‘ शारीरिक बदलाव और मासिक-श्राव’ पर बातचीत दिखाई जाती है तो अनपढ़ -कुपढ़ दोनों ही श्रेणी में गिनी जानेवाली स्वरा भास्कर – राधिका आप्टे जैसी अटपटी अभिनेत्रियां सियार की तरह ‘हुआँ -हुआँ’ करने लगती हैं बिना यह जाने कि इसका घर -परिवार -समाज-देश पर क्या असर होगा।

चिंता का विषय यह भी है कि विवेक अग्निहोत्री -कंगना रनौत जैसी हिंदुत्व एवं देश के हित में दिखनेवाले फ़िल्मी चेहरे भी उनके पक्ष में खड़े हो जाते हैं , इसी तरह ‘संस्कारी फ़िल्मी बाबू’ श्रेणी के फिल्मकार मुंह में दही जमा लेते हैं।’स्वयं को देश का पुरोधा’ और ‘जनता की आवाज’ के रूप में प्रस्तुत करनेवाले छद्म बुद्धिजीवियों की यह जमात बात -बात में यह पूछती है ‘जब हमारे जैसों के साथ ऐसा हो सकता है तो आम जनता के साथ क्या -क्या होता होगा ? जॉन स्ताग्लिआनो की घटिया कार्बनकॉपी महेश भट्ट और अनुराग कश्यप को केरल के पादरियों द्वारा बच्चियों का रेप व्यथित नहीं करता।अंडरवर्ल्ड के लिए फ़िल्में बनाने के कारण मशहूर रामगोपाल वर्मा हर विषय में हस्तक्षेप करते हुए ट्वीट करता है किन्तु ‘येशू : नॉट फ्रॉम द बाइबल’ फिल्म हो या ‘मुहम्मद : द पोक्सो क्रिमिनल’ फिल्म उसकी उँगलियाँ ट्वीट करने से कांपने लगती हैं।

खेद का विषय यह है कि न्यायालयों में निष्पक्ष रहकर न्याय देने बैठे जज हों या पुलिस व प्रशासन में विधि -व्यवस्था बनाये रखने के दायित्व से बंधे अधिकारी , मंत्रमुग्ध होकर हिंदी -भोजपुरी फ़िल्मी लोगों के नरेटिव्स में बह जाते हैं जिसका दुष्प्रभाव जनसामान्य पर पड़ता है। ये ‘साक्षर किन्तु मूर्ख’ अधिकारी तथा निर्णायक यह पूछ ही नहीं पाते कि कोई फिल्मकार या नटुआ स्वयं को इस देश का विशिष्ट नागरिक समझकर व्यवहार क्यों कर रहा है और इसका अधिकार उसको किसने दिया ? वह जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि तो नहीं कि स्वयं को जनप्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत करे।

राष्ट्रद्रोह – समाजद्रोह के हर काम में अधिकाँश हिंदी फिल्मकार और उनका परिवार संलिप्त मिला है। ये लोग जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं। ब्रांड मैनेजरों की एक पूरी पीढ़ी सदल-बल इनके साथ ग्लैमर जोड़ने में खप गयी जिसका परिणाम है कि पूरी तरह अयोग्य- असुरक्षित मानसिकता के – क्षुद्र लोग समाज में अग्रिम पंक्ति के सम्मानित व्यक्ति मान लिये गए। प्रचार माध्यमों ने देश के अन्य प्रभागों के नायकों की छवि धूमिल कर दी और इसकी चमक पर अंडरवर्ल्ड तथा दुश्मनदेश का मुलम्मा चढ़ गया।

समाज के वास्तविक नायक चाहे विज्ञानी हों या खिलाड़ी या समाजसेवक या अध्येता -शोधकर्ता अथवा सैनिक ,राष्ट्र को सकारात्मक दिशा देनेवाले जननायक सभी को ‘लुंज -पुंज ,मानसिक रूप से दिवालिये’ हिंदी फिल्मों के हीरो -हिरोइंस की बैसाखी लेने की बाध्यता सी हो गयी है। इनको अधिकार तो विशेष चाहिए लेकिन कर्तव्य कुछ भी नहीं करना है सिवा समाज को आत्मग्लानि देने और प्रताड़ित करने के।

(कल भी जारी)

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