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गुड़ी पड़वा: हर्ष उल्हास का पर्व !!

हमारी संस्कृति हमारी विरासत।

रात्रि के अंधकार में नववर्ष का स्वागत नहीं होता। नया वर्ष सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है।

चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसन्त ऋतु में आती है। इस ऋतु में सम्पूर्ण सृष्टि में सुन्दर छटा बिखर जाती है। विक्रम संवत के महीनों के नाम आकाशीय नक्षत्रों के उदय और अस्त होने के आधार पर रखे गए हैं। सूर्य, चन्द्रमा की गति के अनुसार ही तिथियाँ भी उदय होती हैं। मान्यता है कि इस दिन दुर्गा जी के आदेश पर श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इस दिन दुर्गा जी के मंगलसूचक घट की स्थापना की जाती है।

धार्मिक दृष्टि से फल, फूल, पत्तियाँ, पौधों तथा वृक्षों का विशेष महत्व है। चैत्र मास में पेड़-पौधों पर नई पत्तियों आ जाती हैं तथा नया अनाज भी आ जाता है जिसका उपयोग सभी देशवासी वर्ष भर करते हैं, उसको नजर न लगे, सभी का स्वास्थ्य उत्तम रहे, पूरे वर्ष में आने वाले सुख-दुःख सभी मिलकर झेल सकें ऐसी कामना ईश्वर से करते हुए नए वर्ष और नए संवत्सर के स्वागत का प्रतीक है गुड़ी पड़वा।

गुड़ी पड़वा (gudi padwa ) का अर्थ:

दो शब्दों में मिलकर बना हैं गुड़ी पड़वा. जिसमे गुडी का अर्थ होता हैं विजय पताका और पड़वा का मतलब होता हैं प्रतिपदा. इस दिन गुडी बनाकर उसे फहराया जाता हैं और उसकी पूजा की जाती हैं. यह प्रथा महाराष्ट्र और उससे जुड़े कुछ राज्यों में मनाई जाती हैं. इसके अलावा घर के दरवाजों पर आम के पत्तों से बना तोरण लगाकर सजाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह तोरण घर में सुख, समृद्धि और खुशि‍याँ लाता है.

गुड़ी पड़वा पर्व हिन्दू संस्कृति में शुरुआत से मनाए जाने की पंरपरा हैं. जिस प्रकार अंग्रेजी सभ्यता में 1 जनवरी का महत्व होता हैं ठीक उसी तरह हिन्दू रीति-रिवाज़ों में गुड़ी पड़वा का खास महत्व होता हैं. भारतवर्ष का सर्वमान्य सवंत विक्रम सवंत हैं. जिसका प्रथम महिना चैत्र माह होता हैं. इस माह के प्रथम दिन को गुडी पड़वा मनाया जाता हैं.

गुड़ी पड़वा पर्व महज नए वर्ष की शुरुआत को लेकर ही नहीं मनाया जाता, इसके पीछे अनेकों कारण हैं, इस दिन कई घटनाएँ हुई थी जो कि सनातन हिन्दू मान्यताओं में काफी अहम योगदान रखती हैं. इसीलिए इस तारीख को मनाने पर कभी एक राय नहीं बनी. यह हैं इस त्यौहार को मनाने के कुछ कारण है।

“चैत्र मासे जगद्ब्रह्म समग्रे प्रथमेऽनि
शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति।” { -ब्रह्मपुराण }

-ब्रम्हपुराण की मानें तो इसी दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ. इसी के चलते इस तिथि को सर्वोतम माना जाता हैं.

गुड़ी पड़वा का महत्व:

“गुड़ी पड़वा” एक मराठी शब्द है जिसमे “पडवा” मूल रूप से संस्कृत से लिया गया है. जिसका असल मतलब है कि, “चैत्र शुक्ल प्रतिपदा”. महाराष्ट्र के वीर योद्धा और महाराज छत्रपति शिवाजी थे, जिन्होंने इस दिन को नए साल के रूप में भव्य समारोह के साथ जीत की “विजयध्वज” के प्रतीक के रूप मनाया था. इसके बाद इस दिन शिवाजी के उत्सव का प्रभाव महाराष्ट्र की एक मुख्य धारा के रुप में मनाया जाने लगा.

यह उत्सव भारत में फसल के उत्सव को भी दर्शाता है. इसका मतलब है कि रबी फसलों की फसल खत्म हो चुकी है और साल की शुरुआत में ताजे फलों की बुवाई करके स्वागत किया जाता है जैसे कि आम के दिन बड़े भाग्यशाली होते हैं.

इस दिन किए जाने वाले प्रमुख अनुष्ठानों को एक पवित्र स्नान, नए कपड़े पहनकर पूजा के रूप में किया जाता है. सामने के गेट या मुख्य द्वार में रंगीन रंगोलिस की ड्राइंग का पालन करके घर को सजाने के लिए, फूलों का उपयोग घरों को जीवंतता और रंगीन फूलों से रोशन करने के लिए किया जाता है. एक नया कलश तांबे या चांदी से बना होता है और रंग और केसरिया कपड़े से ढंका होता है और प्रवेश द्वार पर उल्टा फहराया जाता है. सभी सजावट और अनुष्ठान किए जाने के बाद नीम और गुड़ का प्रसाद बनाया जाता है.

गुडी पडवा की पूजा-विधि:;

निम्न विधि को सिर्फ़ मुख्य चैत्र में ही किए जाने का विधान है–
• नव वर्ष फल श्रवण (नए साल का भविष्यफल जानना)
• तैल अभ्यंग (तैल से स्नान)
• निम्ब-पत्र प्राशन (नीम के पत्ते खाना)
• ध्वजारोपण
• चैत्र नवरात्रि का आरंभ
• घटस्थापना

संकल्प के समय नव वर्ष नामग्रहण (नए साल का नाम रखने की प्रथा) को चैत्र अधिक मास में ही शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जा सकता है। इस संवत्सर तथा वर्ष 2080 है। साथ ही यह श्री शालीवाहन शकसंवत 1945 भी है और इस शक संवत का नाम शोभन है।

हिन्दू पंचांग विक्रम सवंत का शुभारंभ गुड़ी पड़वा से ही होता है. महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, मास और वर्ष की गणना कर विक्रम सवंत की रचना की थी. उस दौरा की गई गड़ना आज के कालखंड की गड़ना से बिल्कुल सटीक बैठती हैं.
गुड़ी पड़वा को लेकर एक और धार्मिक मान्यता यह है कि इसी दिन भगवान् श्री राम ने दक्षिण के लोगों को बाली के अत्याचारों से मुक्त करवाया था. जिसकी ख़ुशी में लोगों में विजय पताकाएँ फहराई गई थी.

“सूर्य संवेदना पुष्पे:, दीप्ति कारुण्यगंधने|
लब्ध्वा शुभम् नववर्षेअस्मिन् कुर्यात्सर्वस्य मंगलम्.|”

-जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, पुष्प देता है, संवेदना देता है और हमें दया भाव सिखाता है उसी तरह यह नव वर्ष हमें हर पल ज्ञान दे और हमारा हर दिन, हर पल मंगलमय हो.

नववर्ष मनाने की परंपरा::

-रात्रि के अंधकार में नववर्ष का स्वागत नहीं होता। नया वर्ष सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है।
-हिंदू लोग इस दिन गुड़ी का पूजन करते हैं
-नववर्ष के ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण कर दिया जाता है।
-घर के मुख्य द्वार पर सुन्दर रंगोली बनाई जाती हैं।

-इस दिन सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं। सामान्यरूप से गुड़ी पड़वा के दिन मराठी महिलाएँ नौवारी साड़ी पहनती हैं जबकि पुरुष केसरिया या लाल पगड़ी के साथ कुर्ता-पजामा पहनते हैं।

-घर को ध्वज, पताका और तोरण से सजाया जाता है।
-पर्व की खुशी में विभिन्न क्षेत्रों में विशेष प्रकार के व्यंजन भी तैयार किये जाते हैं।
-पूरनपोली नाम का मीठा व्यंजन इस पर्व की खासियत है। महाराष्ट्र में श्रीखंड भी विशेष रूप से बनाया जाता है। वहीं आंध्रा में पच्चड़ी को प्रसाद रूप मे बनाकर बांटने का प्रचलन भी गुड़ी पाड़वा के पर्व पर है।
-बेहतर स्वास्थ्य की कामना के लिये नीम की कोपलों को गुड़ के साथ खाने की परंपरा भी है। मान्यता है कि इससे सेहत ही नहीं बल्कि संबंधों की कड़वाहट भी मिठास में बदल जाती है।
-संध्याकाल के समय लेज़िम नामक पारम्परिक नृत्य भी किया जाता हैं।
-कन्या, गाय, कौआ और कुत्ते को भोजन कराया जाता है।
-सभी एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई देते हैं। एक दूसरे को तिलक लगाते हैं। मिठाइयाँ बाँटते हैं। नए संकल्प लिए जाते हैं।

विभिन्न स्थलों में गुड़ी पड़वा पर्व का आयोजन:

देश में अलग-अलग जगहों पर गुड़ी पड़वा पर्व को भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है।

-गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो नाम से मनाता है।
-कर्नाटक में यह पर्व युगाड़ी नाम से जाना जाता है।
-आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में गुड़ी पड़वा को उगाड़ी नाम से मनाते हैं।
-कश्मीरी हिन्दू इस दिन को नवरेह के तौर पर मनाते हैं।
-मणिपुर में यह दिन सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा कहलाता है।
-इस दिन चैत्र नवरात्रि भी आरम्भ होती है।

गुड़ी पड़वा और उससे जुड़े रोचक तथ्य :

-एक अन्य मत के अनुसार भगवान श्रीराम से ही जुड़ी हुई हैं जिसके अनुसार इस दिन भगवान् श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था.
-इस दिन उज्जैयिनी की सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर विक्रम संवत का प्रवर्तन किया.
-इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था. इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है.
-इस दिन युधिष्ठिर ने राज्यारोहण किया था.
-महर्षि दयानन्द द्वारा आर्य समाज की स्‍थापना का दिवस.
-इसी दिन से माँ दुर्गा का उपासना पर्व नवरात्री की शुरुआत होती हैं.
-गुड़ी पड़वा पर ही सिखों के द्वितीय गुरु गुरु अंगद देव जी के जन्म हरीके नामक गांव में, जो कि फिरोजपुर, पंजाब में हुआ था.
-गुडीपड़वा के दिन सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल का प्रकट दिवस हुआ था.
-चेटीचंड दो शब्दों से मिलाकर बना है. जिसमें चेटी का अर्थ चैत्र और चंड का अर्थ होता है चंद्रमा. चैत्र माह में जब पहली बार चंद्र दर्शन होता है तो सिंधी समुदाय चेटीचंड का त्योहार मनाता है.

गुडी पडवा: नववर्ष कविता:

बुने हुए सपने , बुनी हुई यादो का मल्हार,
कोयल की बोली में शुरु हुआ गुड़ी का त्यौहार
मीठे-मीठे पकवानों से सज़ा रसोई का द्वार,
मीठे अरमानों से किया नये वर्ष का श्रंगार.
स्वच्छ निर्मल आसमान में उड़ती पतंग,
नए जीवन की उड़ान में भी हो वही तरंग.
कल-कल छल-छल कर रहा नदी का जल,
ऐसे ही निर्मल बीते नव वर्ष का हर पल.

यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है। हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं, फिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं।

जब कभी यह सब उत्सव रूप में धूमधाम से होता था तब लोगों के कदम ठिठक जाया करते थे और वे कजरी गीत सुनने के लिए अपने को रोक नही पाते थे। चलन और स्वरूप भले ही बदल गया हो, प्रकृति और वृक्ष वनस्पति के प्रति कृतज्ञता का भाव भी कुछ कम हो और वह संपदा के रूप में देखी जाने लगी हो, लेकिन उसका महत्व कम नहीं हुआ है। गाहे-बगाहे प्रकृति अपने होने का महत्व और उपेक्षा के दुष्परिणामों का बोध करा ही देती है। प्रकृति के मातृरूप को समझने, अनुभव और अंगीकार करने का उत्सव है।

दरअसल प्रकृति हमें कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। जैसे-पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं है। इस पाठ को जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में आत्मसात किया उसे असफलता से कभी डर नहीं लगा। ऐसे व्यक्ति अपनी हर असफलता के बाद विचलित हुए बगैर नए सिरे से सफलता पाने की कोशिश करते हैं। वे तब तक ऐसा करते रहते हैं जब तक सफलता उन्हें मिल नहीं जाती। इसी तरह फलों से लदे, मगर नीचे की ओर झुके पेड़ हमें सफलता और प्रसिद्धि मिलने या संपन्न होने के बावजूद विनम्र और शालीन बने रहना सिखाते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि प्रकृति में हर किसी का अपना महत्व है। एक छोटा-सा कीड़ा भी प्रकृति के लिए उपयोगी है, जबकि मत्स्यपुराण में एक वृक्ष को सौ पुत्रों के समान बताया गया है। इसी कारण हमारे यहां वृक्ष पूजने की सनातन परंपरा रही है। पुराणों में कहा गया है कि जो मनुष्य नए वृक्ष लगाता है, वह स्वर्ग में उतने ही वर्षो तक फलता-फूलता है, जितने वर्षो तक उसके लगाए वृक्ष फलते-फूलते हैं।

गुड़ी पड़वा की हैं अनेक कथाएं,
गुड़ी ही विजय पताका कहलाए,
पेड़-पौधों से सजता है चैत्र माह,
इसलिए हिंदू धर्म में यह नव वर्ष कहलाए,

गुड़ी पड़वा की हार्दिक शुभकामनाएं!!!

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