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१३० सालों बाद भी स्वामी विवेकानंद का डर क्यों..?

Swami Vivekananda

I am a Hindu, I am proud to belong to a religion which has taught the world both tolerance and universal acceptance. We believe not only in universal toleration, but we accept all religions as true. – Swami Vivekananda

आप शीर्षक देखकर बहुत अचंभित हो रहे होंगे…घटना भी ऐसी हुई है स्वामी विवेकानंद जी का शिकागो में दिये गए प्रख्यात भाषण से हम सब भली-भांति परिचित हैं। किंतु स्वामीजी द्वारा शिकागो में दिया यह हिंदू तत्त्वज्ञान पर आधारित यह अनुपम उद्बोधन आज भी विश्व धर्म संसद भुला नहीं पा रहा हैं।

हुवा यह की, राष्ट्रद्रोही वामपंथियों और धर्मांध,जिहादी इस्लामवादियों के दुष्प्रचार के बाद विश्व धर्म संसद ने विवेकानन्द केंद्र की उपाध्यक्षा निवेदिता भिडे (nivedita bhide) का भाषण आकस्मिक रद्द कर दिया।

धर्म संसद में सैकड़ों विद्वानोंने भाग लिया..

दुनिया के धर्मों का सबसे बड़ा आयोजन शिकागो, अमेरिका में इसी साल अगस्त १४ -१८ के बीच हुआ। १८९३ में इसी शहर में भारत से स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद में अपनी आवाज बुलंद की थी। अपने पहले आयोजन के १३० साल बाद भी इसकी इसकी उपयोगिता बनी हुई है। २०२३ के पांच दिवसीय विश्व धर्म संसद में ८० से अधिक देशों के १०,००० से ज्यादा धार्मिक विद्वान सहभागी हुवे।

विश्व धर्म संसद के उद्घाटन सत्र में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ( antonio guterres) तथा अनुभवी अमेरिकी नेता नेंसी पेलोसी (nancy pelosi) समेत सैकड़ों प्रतिष्ठित शख्सियतों ने भाग लिया। भारत से श्रद्धेय लोकेश मुनि अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक सहभागी हुवे। शिकागो के इलिनोइस में सम्पन्न विश्व धर्म संसद के आयोजकों ने स्वामी विवेकानन्द केंद्र की,उपाध्यक्ष निवेदिता रघुराम भिड़े को अचानक सूचित किया कि १६ अगस्त, २०२३ को उनका निर्धारित भाषण रद्द कर दिया गया है।

कभी अमेरिका के शिकागो शहर के धर्म संसद में आज से १३० साल पहले स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म,संस्कृति, सभ्यता से विश्व को अवगत कराया था।अब वहीं आयोजित होने वाली विश्व धर्म संसद के हिन्दू द्वेषी आयोजकों ने वक्ता के तौर पर भारत से वहाँ जाने वाली स्वामी विवेकानन्द केंद्र की उपाध्यक्ष निवेदिता रघुराम भिडे का भाषण रद्द कर दिया हैं। यह हिन्दूफोबिया का उत्तम उदाहरण हैं।

भिडे का भाषण यूँ ही रद्द नहीं हुआ, बल्कि धर्म संसद के इस बहिष्कार के मूल में “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” के प्रति तिरस्कार तथा घृणा छुपी हुई है। इसके पीछे छद्म वामपंथी मीडिया, शिक्षा जगत और धर्मांध, जिहादी इस्लामी समूहों का वो सहयोग रहा, जिसने इस आयोजन में हिंदू प्रतिनिधित्व को दबाने के लिए पुरजोर प्रयास किया।

आयोजकों द्वारा उनके इस्लामोफोबिक ट्वीट्स और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (rashtriya swayamsevak sangh-RSS) के साथ उनके करीबी संबंधों के बारे में चिंता जताए जाने के बाद उनका नाम “featured global luminaries” की सूची से अचानक हटा दिया गया था। आयोजकों ने तर्क दिया था कि “स्वतंत्रता और मानवाधिकारों” की रक्षा के विषय के साथ विश्व धर्म संसद जैसी सभा में संघ परिवार के किसी भी व्यक्ति के लिए इस मंच पर कोई जगह नहीं होनी चाहिए, जिसकी तीखी अल्पसंख्यक विरोधी विचारधारा ने भारत में अभूतपूर्व मानवाधिकार संकट पैदा कर दिया है।

Freedom of speech का डंका बजानेवाले विश्व धर्म संसद को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से परहेज क्यों ? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दू तत्त्वज्ञान का, हिन्दू जीवनपद्धती का स्वीकार करता हे केवल इसलिए ?

निवेदिता भिडे को निमंत्रण देने के बाद उसे रद्द कर देने पर विश्व धर्म ससंद की credibility पर अवश्य प्रश्नचिन्ह लगा हैं।

-निवेदिता भिडे

निवेदिता भिडे को साल २०१७ में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वो कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द केंद्र की ‘जीवनव्रती’ हैं। ‘जीवनव्रती’ मतलब संगठन के काम में आजीवन समर्पित कार्यकर्ता। इस संगठन के लिए वह १९७७ से काम कर रही हैं। वर्तमान में वो इस केंद्र में उपाध्यक्षा हैं। उनकी अबतक १५ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। तथा उन्होंने विश्व के कई प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में व्याख्यान दिए हैं।

विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की स्थापना के बाद से उसके ट्रस्टी के तौर पर वो सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने में सक्रिय तौर से शामिल रही हैं। वो जुलाई २०२० से भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की सदस्य हैं।

-विवेकानन्द केंद्र

विवेकानन्द केंद्र (vivekananda kendra,kanyakumari) भारत का एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संगठन है। इसकी स्थापना १९७२ में भारत के महान दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानन्द के सम्मान में तमिलनाडु के कन्याकुमारी में की गई थी।

यह संगठन स्वामी विवेकानन्द के विचारों से प्रेरणा लेकर मार्गक्रमण कर रहा है। इसका उद्देश्य आध्यात्मिक रूप से जागृत और सांस्कृतिक रूप से परिलक्षित भारत के दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है। इस केंद्र की स्थापना एकनाथजी रानडे ने १९७२ में की थी।

एकनाथजी रानडे (eknathji ranade) स्कूल के दौरान ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जुड़ गए थे। धीरे-धीरे वह संगठन के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजक बन गए। एकनाथजी एक समर्पित कार्यकर्ता और स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं के अनुयायी थे। उन्होंने विवेकानन्द केंद्र कन्याकुमारी की स्थापना और उसके फलने-फूलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी दिखाई राह पर चलते हुए ये केंद्र आज भी स्वामी विवेकानन्द के आदर्शों और मूल्यों को बढ़ावा दे रहा है।

-विश्व धर्म संसद (Parliament of the World’s Religions)

विश्व धर्म संसद एक अंतरराष्ट्रीय मंच है जो अंतर-धार्मिक संवाद, सहयोग और समझ को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं के व्यक्तियों, संगठनों और नेताओं को एक साथ लाती है। ऐसा माना जाता है कि यह वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने, उन पर बात रखने, शांति और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए एक मंच के तौर पर काम करता है।

पहली बार विश्व धर्म संसद १८९३ में संयुक्त राज्य अमेरिका के इलिनॉस राज्य के शिकागो शहर आयोजित की गई थी। इसे विश्व के कोलंबियाई प्रदर्शनी के तौर पर आयोजित किया गया था। ये १४९२ में क्रिस्टोफर कोलंबस के अमेरिका में आगमन की ४०० वीं वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित किया गया था।

१८९३ की इस संसद को एक ऐतिहासिक घटना माना जाता है, क्योंकि यह वैश्विक स्तर पर अंतरधार्मिक संवाद की शुरुआती कोशिशों में से एक थी। इसमें ईसाई, हिंदू , इस्लाम सहित अन्य कई धार्मिक परंपराओं के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।

विश्व धर्म संसद में आम तौर पर गतिविधियों और कार्यक्रमों की एक विस्तृत श्रृंखला आयोजित की जाती है। इनमें पूर्ण सत्र, कार्यशाला, पैनल चर्चा, अंतरधार्मिक संवाद, सांस्कृतिक आयोजन, प्रदर्शनी, युवा कार्यक्रम और सामुदायिक सेवाओं जैसी गतिविधियाँ और कार्यक्रम होते हैं।

विश्व धर्म संसद २०२३ और हिन्दू विरोधी षड्यंत्र ..

विश्व धर्म संसद अपनी स्थापना के बाद से अनियमित अंतरालों पर आयोजित की जाती रही है। इस वर्ष की सभा का विषय था ‘A Call to Conscience: Defending Freedom and Human Rights’।

दुर्भाग्य से इस वर्ष सम्मेलन के आयोजकों ने राष्ट्रद्रोही वामपंथियों और धर्मांध,जिहादी इस्लामियों के सामने समर्पण कर दिया।

शिकागो के लिए रवाना होने से पहले भिडे को रटगर्स विश्वविद्यालय न्यू जर्सी में वामपंथी-इस्लामवादी डिपार्टमेंट के सदस्य ऑड्रे ट्रुश्के की एक सोशल मीडिया पोस्ट मिली थी। इस ट्वीट में ट्रुश्के ने भिडे को ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ करार दिया।

‘Bhide has personally engaged in spreading disinformation that demonises Indian Muslims’ – Audrey Truschke, Rutgers University

ट्रुश्के ने अपनी ट्वीट में लिखा, “भिडे भारतीय मुस्लिमों को शैतान के तौर पर पेश करती है।हिंदू राष्ट्रवादी नेतृत्व में भारत में मुस्लिम विरोधी हिंसा तेजी से बढ़ी है। भिडे के हिंदू राष्ट्रवाद का समर्थन करने वाले घोर दक्षिणपंथी राजनीतिक संगठनों के साथ गहरे रिश्ते हैं। ये एक गहरी इस्लाम विरोधी राजनीतिक विचारधारा है।”

ऑड्रे ट्रुश्के Students against hindutva ideology – SAHI के सलाहकार बोर्ड में भी हैं। यह संस्था अमेरिका की दक्षिणपंथी विचारधारा विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ गहरे रिश्ते रखती है। ये संस्था २०२० में हिंदूफोबिक ‘होली अगेंस्ट हिंदुत्व’ अभियान चलाने के लिए कुख्यात है। तब इसे केवल ‘स्टूडेंट्स अगेंस्ट हिंदुत्व’ कहा जाता था।

SAHI के सलाहकार बोर्ड के एक सदस्य अजीत साही हैं, जो भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद के एडवोकेसी निदेशक हैं। अजीत साही बदनाम तहलका पत्रिका के पूर्व कार्यकारी निदेशक हैं। वह कई अवसरों पर अमेरिका के प्रमुख मंचों से भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करते नजर आ चुके हैं।

कार्यक्रम के स्पॉन्सर्स में से एक भारतीय अमेरिकी मुस्लिम संगठन ने भी भिडे को विश्व धर्म संसद के मंच से हटाने के लिए सक्रिय कदम उठाए। उसने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना वाले पर्चे बाँटे।

Indian american muslim council एक कट्टरपंथी इस्लामी समूह है। इसका सिमी जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध रहे हैं और भारत के खिलाफ लॉबी करने का उसका एक लंबा इतिहास रहा है।

IAMC के कार्यकारी निदेशक रशीद अहमद ने कहा था, “विश्व धर्म संसद में प्रतिभागियों को ‘विवेक का आह्वान: स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा’ सम्मेलन में हिंदू राष्ट्रवादी निवेदिता भिडे को शामिल करने का मुखर विरोध करना चाहिए।” रशीद ने आगे कहा था, ” भिडे विवेकानंद केंद्र की नेता है और यह संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक सहयोगी संगठन है। भिडे भारत की मौलिक रूप से बहिष्कारवादी नजरिए को आगे बढ़ाने में मदद कर रही हैं ये ‘स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा’ के बिल्कुल विरोधी है।”

आश्चर्य की बात यह है कि, IAMC जमात-ए-इस्लामी समर्थित एक संगठन है, जो खुद को अधिकारों की वकालत करने वाली संस्था होने का दावा करता है। अतीत में इसने भारत को अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर बने संयुक्त राज्य आयोग की ब्लैक लिस्ट में डालने के लिए अमेरिका में कई समूहों के साथ सहयोग किया था। यहाँ तक कि उन्हें पैसे भी दिए थे। DisinfoLab की एक विस्तृत रिपोर्ट में आतंकी संगठन जमात-ए-इस्लामी के साथ IAMC के रिश्तों का खुलासा हुआ है। वहीं, middle east institute ने ७ अगस्त २०२३ को एक लेख प्रकाशित किया था। इसका शीर्षक ‘कार्यकर्ताओं ने विश्व धर्म संसद में हिंदू राष्ट्रवादी मौजूदगी पर फिक्र जताई’ था। यह लेख धर्मांध इस्लामी आज़ाद एस्सा (Azad Essa) ने लिखा था।

उसने लिखा, “निवेदिता भिडे ने नियमित तौर पर दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादियों की बयानबाजी को साझा किया है, जो अहम भारतीय एक्टिविस्ट को बदनाम करते हैं और उन्हें शैतान बताते हैं। इन लोगों ने शोधकर्ता और एक्टिविस्ट आफरीन फातिमा, वाशिंगटन पोस्ट (Washington post) के कॉलमनिस्ट राणा अय्यूब, दिवंगत ईसाई फादर स्टेन स्वामी को अपना निशाना बनाया है।”

आजाद एस्सा खुद को पत्रकार बताकर निवेदिता भिडे के खिलाफ अभियान का नेतृत्व करते हैं। इस्लामोफोबिया की आड़ में वो मुस्लिमों को पीड़ित और अन्य को हमलावर के तौर पर दिखाने के लिए अपने लेखन का इस्तेमाल करते हैं। आजाद एस्सा ने अपने तर्क को मजबूत करने के लिए निवेदिता भिडे के बारे में उनकी टिप्पणियों को जिक्र किया है। जिन अन्य दोषियों का पत्रकार आजाद एस्सा ने अपनी सुविधानुसार इस्तेमाल किया वे IAMC के रशीद अहमद जैसे शख्स हैं। रशीद अहमद भी एक विवादास्पद पृष्ठभूमि वाला स्वयंभू पत्रकार है, जो पहले muslim brotherhood से जुड़े नेटवर्क अल जज़ीरा इंग्लिश से जुड़ा था।आजाद एस्सा मिडिल ईस्ट आई के लिए काम करते हैं। इसके मालिक जमाल अवन जमाल बेसासो हैं, जो पहले कतर में अल जज़ीरा और लेबनान में हमास से जुड़े अल-कुद्स टीवी के पूर्व अधिकारी रहे हैं। हमास फिलिस्तीनी इस्लामी आतंकवादी संगठन है।

हमास ( Hamas a terrorist organization) का मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक लंबा इतिहास रहा है। हमास को यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, इज़राइल, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम सहित कई देशों ने एक आतंकवादी संगठन के तौर पर नामित किया है।

समालिंक टेलीविजन प्रोडक्शन कंपनी अल कुद्स (Al Quds) टीवी की वेबसाइट के लिए पंजीकृत एजेंट के तौर पर काम करती है। इससे साबित होता है कि ये एमईई और अन्य राष्ट्रद्रोही वामपंथी और धर्मांध इस्लामी ही थे, जिन्होंने निवेदिता भिडे को निशाना बनाया। इसी वजह से विश्व धर्म संसद के सत्र में उनका भाषण रद्द कर दिया गया।

अपना कर्म लौटकर आता है….

कहते हैं न कि कर्म लौटकर आता है और ऐसा ही शुक्रवार १८ अगस्त २०२३ को हिंदू विरोधी नैरेटिव के लिए कुख्यात इतिहासकार ऑड्रे ट्रुश्के के साथ हुआ। उन्हें शिकागो की विश्व धर्म संसद में अपने निर्धारित भाषण के दौरान अप्रत्याशित घटनाओं का सामना करना पड़ा। उन्हें वहाँ भारत विरोधी समर्थकों सुनीता विश्वनाथ और रशीद अहमद के साथ ‘सेंसरशिप,’ ‘स्वतंत्र भाषण,’ ‘दुष्प्रचार’ और कथित ‘दक्षिणपंथी समूहों से खतरे और उत्पीड़न’ जैसे विषयों पर चर्चा करने के लिए बुलाया गया था। ‘मानव अधिकारों की रक्षा के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का महत्व’ शीर्षक वाले कार्यक्रम के दौरान ट्रुश्के ने खाली कुर्सियों और खाली सभागृह को संबोधित किया।

धार्मिक सम्मेलन से निवेदिता भिडे को बाहर करने की वकालत करने इन लोगों को इनके कर्म का फल मिला और विश्व धर्म संसद में इन्हें सुनने के लिए लोग ही नहीं पहुँचे। आख़िरकार इस सत्र को वर्चुअली आयोजित कर दिया गया । इस तरह हिंदू धर्मग्रंथों में कर्म के सिद्धांत की व्याख्याएँ फिर से सही साबित हुईं।

इस सिद्धांत का सार यह है कि व्यक्ति आखिरकार अपने कर्मों का फल भोगता है। ऑड्रे ट्रुश्के का उद्देश्य निवेदिता भिडे को उनके विचारों को दबाने के लिए सम्मेलन में संबोधित करने से रोकना था, लेकिन विडंबना यह है कि उन्होंने खुद को उसी कार्यक्रम में अपनी भाषण के दौरान बिना दर्शकों को संबोधित करना पड़ा।

कहते हैं ना :-

छल करोगे तो छल मिलेगा ..

आज नहीं तो कल मिलेगा।

अगर जियोगे जिंदगी सच्चाई से..

तो सुकून हर पल मिलेगा।।

https://thewire.in/religion/parliament-of-worlds-religions-rss-linked-nivedita-bhide-dropped-from-the-speakers-list

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