OpinionScience and Technology

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान:भाग 17

विशेष माहिती श्रृंखला : भाग 17 (17-30)

गणित से हमारा पुराना नाता हे;    

गणित में हमारे पूर्वजों का योगदान अत्यंत विशिष्ट एवं विश्व प्रसिद्ध है। इस खंड का प्रारंभ गणित में भारत के अद्वितीय योगदान शून्य की संकल्पना और स्थानीय मान पद्धति से होता है। 3000 ई. पू. से 1200 ई. काल में भारत के योगदान को सारिणी में दिखाया गया है। अगले दो खंडों में हड़प्पा तथा वैदिक काल के गणित की झलक प्रस्तुत की गयी है। इनमें विभिन्न ज्यामितियों की बलिवेदियों की डिज़ाइन के शुल्ब सूत्र तथा समकोण त्रिभुज की बौद्धायन प्रमेय जिसे आज पाइथागोरस प्रमेय कहा जाता है, प्रमुख है। इसके पश्चात जैन गणितज्ञों द्वारा विकसित बड़ी संख्याओं, धातांक, लघुगुणक तथा क्रमचय एवं समुच्चय आदि का वर्णन है।

छठे खंड में पेशावर के पास के गांव से 1881 में प्राप्त बक्शाली पांडुलिपि का वर्णन है जिससे हमें तीसरी शताब्दी के भारतीय गणित की स्थिति का पता लगता है। अगले खंड में ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक भारत में विकसित अंकीय प्रणालियों की चर्चा की गयी है।

आठवें खंड में भारतीय अंकीय कोड़ों की अद्वितीय प्रणाली का वर्णन है जिसकी सहायता से गणितीय जानकारी को पद्य व गद्य में व्यक्त किया जा सकता है। नौवें खंड में ब्रह्मगुप्त (600 ई.) के चक्रीय चतुर्भजों तथा द्वितीय डिग्री के अनिर्धारित (Indeterminate) समीकरणों के हल संबंधी विश्व प्रसिद्ध योगदान के बारे में बताया गया है। अगले खंड में (ग) के मान को अधिकतम परिशुद्धता से ज्ञात करने के भारतीय गणितज्ञों के प्रयासों का वर्णन है। इसके पश्चात त्रिकोणमिति, कलन तथा मज़ेदार गणित का खंड है जो बच्चों को गणित सीखने की प्रेरणा देता है। तत्पश्चात 14 वीं से 17 वीं शताब्दी के बीच केरल के गणितज्ञों द्वारा विशेषत: अनंत श्रेणी के क्षेत्र में दिये महत्वपूर्ण योगदान की चर्चा है।

  हड़प्पाकाल में गणित

हड़प्पा अथवा सिंधु घाटी सभ्यता (3000 ई.पू.) अखंड भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्रों में लगभग 12 लाख वर्ग मील में फैली हुई थी । इसमें हड़प्पा मोहनजोदड़ों तथा लोथल जैसे कई शहर भी शामिल थे। यह शहर सुनियोजित थे और इनकी मानक वास्तुकला से स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग मापन व प्रायोगिक गणित में अत्यंत प्रवीण थे । वहां मिले साहुल पिंड (plumb bobs) बिलकुल समान भार के हैं और यह मापविज्ञान के इतिहास में बड़ी आश्चर्यजनक बात है । यदि किसी साहुल पिंड के भार को इकाई माना जाये तो इस इकाई की उस समय प्रचलित भार शृंखला 0.05, 0.1, 0.5, 2.5, 10, 20, 50, 100, 200 एवं 500 गुणकों में थी । स्पष्ट है कि दशमलव प्रणाली वहां प्रचलित थी ।

सिंधु इंच

लम्बाई नापने के लिये हड़प्पा सभ्यता के लोग लगभग आज जैसा स्केल ही प्रयोग करते थे जिसमें एक समतल के दो निश्चित बिंदुओं के बीच की दूरी को 5 बराबर भागों में बांटा गया था । इस चिन्हांकन की यथार्थता बहुत अच्छी पायी गयी। है (औसत 0.1 मिमी.) । उस समय का इंच आज के 1.32 इंच के बराबर होता था

3 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button