OpinionScience and Technology

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान: भाग 18

विशेष माहिती श्रृंखला : भाग 18 (18-30)

भार एवं मापकों का मानकीकरण

हड़प्पा काल में, भट्टी में तपायी गयी ईंटें बनाने की तकनीकी काफी विकसित थी । 15 विभिन्न प्रकार की ईंटें वहां से मिली हैं जिनमें लम्बाई, चौड़ाई व ऊंचाई का अनुपात 4:2:1 है जो आज भी इष्टतम समझा जाता है । इतने उत्तम मानकीकरण से सिद्ध होता है कि वहां पर केंद्रीय मापन तकनीकी लागू थी और उन्हें अंकों की भी जानकारी थी । वहां की खुदाई में वृत्त बनाने के लिये कंपास का मिलना आश्चर्यजनक है । एक दूसरे को काटते वृत्तों में बनी वर्गाकार आकृतियां भी मिली हैं।

वैदिक काल में गणित

वैदिककाल में गणित की जानकारी कल्प नामक वेदांग में शुल्ब सूत्रों रूप में मिलती है । वेदी के मापन में प्रयुक्त रस्सी को शुल्ब कहा जाता है। सूत्र का अर्थ है जानकारी को संक्षिप्ततम रूप में प्रस्तुत करना। शुल्व सूत्र उनके रचयिताओं -बौद्धायन, अपस्तंभ, कात्यायन आदि के नाम से जाने जाते हैं । इनमें विभिन्न ज्यामितीय आकारों की वेदियां बनाने का वर्णन है ।

श्री यंत्र

अथर्ववेद के एक मंत्र में तांत्रिकों द्वारा ध्यान में प्रयुक्त जटिल ज्यामितीय रचनाओं का वर्णन है। इनमें दसियों त्रिभुज हैं जो एक दूसरे को बिलकुल निश्चित बिंदुओं पर काटते हैं ।

आर्यभट प्रणाली

‘आर्यभटीय’ पुस्तक में आर्यभट द्वारा स्वयं प्रस्तावित एक अन्य शब्द- अंक प्रणाली का वर्णन है । इसमें देवनागरी लिपि के क से म तक के 25 व्यंजनों को 1 से 25 तक का मान दिया जाता था । 30,40 संख्याओं को य, र, ल, व, – आदि व्यजनों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया था और स्वर 10 के घातांक को दर्शाते हैं। इस प्रणाली में बायीं ओर से दायीं ओर पढ़ना होता है।

केशवर ज्यामिति एवं बीजगणित में ब्रह्मगुप्त का योगदान ब्रह्मगुप्त के चक्रीय चतुर्भुज जिन चतुर्भुजों के चारों शीर्ष बिंदु वृत्त की परिधि पर स्थित होते हैं, उन्हें चक्रीय चतुर्भुज कहा जाता है । ब्रह्मगुप्त का ज्यामिति में सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान, चक्रीय चतुर्भुज क्षेत्र में है । अपनी विख्यात पुस्तक ‘ब्रह्म-स्फुट सिद्धांत’ में, चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल के लिये सही सूत्र बताने वाले वह विश्व के पहले गणितज्ञ थे । बायर के अनुसार, ‘संभवतः यह समीकरण ब्रह्मगुप्त के योगदान में सर्वोत्तम है’ ।

इसी प्रकार चक्रीय चतुर्भुज के कर्णों को ज्ञात करने के समीकरण भारतीय ज्यामिति में अद्वितीय हैं । पश्चिमी गणितज्ञों में से डब्ल्यू. स्नेल ने  1619 मे पहिली बार चक्रीय चतुर्भुज के कण के समीकरण दिये ।

ब्रह्मगुप्त का एक अन्य योगदान है, ऐसे चक्रीय चतुर्भुज की रचना जिसकी भुजाओं, कर्णों तथा क्षेत्रफल का मान परिमेय (पूर्णांक) हो तथा उसके कर्ण, एक दूसरे को लंबवत (at right angles) काटते हों । ऐसा चक्रीय चतुर्भुज ‘ब्रह्मगुप्त चतुर्भुज’ कहलाता है ।दो समकोणी त्रिभुज लीजिये जिनकी भुजायें क्रमश: e, f, g तथा p,q,r हैं तब ब्रह्मगुप्त चतुर्भुज की भुजायें इस प्रकार होंगी,

AB = gp, BC= er, CD=gq, DA=fr

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button