शहीदी दिवस का सच..

जब यह खबर देखी की उमर अब्दुल्ला तथाकथित कश्मीर के शहीदों के लिए शहीदी दिवस पर फातिहा पढ़ने के लिए दीवाल कूद कर गए,
जिज्ञासा हुई कि आखिर यह कौन से कश्मीर की आजादी की लड़ाई से लड़ने वाले शहीद थे जिनकी शहीदी दिवस मनाने पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। और उमर अब्दुल्ला एक राज्य का मुख्यमंत्री दीवार कूद कर फातिहा पढ़ने गए।
फिर जो सच्चाई पता चली वह बेहद भयावह और गन्दी सच्चाई थी। जिसे कभी भी रोमिला थापर या दूसरे इतिहासकारों ने हमें नहीं बताया।
13 जुलाई 1931 को जिनकी याद में मोदी सरकार के पहले तक शहीदी दिवस मनाया जाता था वो लोग असल में शहिद नहीं थे यह दंगाई थे और 22 हिंदू महिलाओं के बलात्कार के आरोपी थे जिन्हें महाराजा हरि सिंह की पुलिस ने तब गोली मार दिया था जब यह एक अदालत परिसर में जबरदस्ती घुसकर लोगों को और जज को मारने की कोशिश कर रहे थे
और अंग्रेजों के साथ मिलकर यह महाराजा हरि सिंह का तख्ता पलट करना चाहते थे अंग्रेजों ने 1930 के दशक में कश्मीर को उथल-पुथल करके उसे पर कब्जा करने के लिए बड़ी गंदी चाल चली उसे दौर में कश्मीर बहुत विशाल हुआ करता था गिलगित बाल्टिस्तान मुजफ्फराबाद मीरपुर स्कर्दू अक्साई चीन शख्सगान घाटी यह सब कश्मीर में आते थे और उसे जमाने में कश्मीर का क्षेत्रफल भारत के कई राज्यों से भी विशाल हुआ करता था महाराजा हरि सिंह उन शासको में से थे जिनका शासन मुस्लिम बाहुल इलाके में था
फिर अंग्रेजों ने एक साजिश के तहत महाराजा हरि सिंह का तख्ता पलट करने की प्लानिंग किया और इसके लिए पेशावर के एक अहमदी मुस्लिम अब्दुल कादिर को एक खानसामा के भेष में श्रीनगर में स्थापित कर दिया उसके बाद अंग्रेजों ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर शेख मोहम्मद अब्दुल्ला जो एक कट्टर जिहादी विचारधारा का मुस्लिम था उसे जम्मू कश्मीर भेजा
फिर वहां शाह हमदान मैदान में एक सभा आयोजित किया गया जिसमें अब्दुल कादिर ने एक बहुत भड़काऊ भाषण दिया और महाराजा हरि सिंह के खिलाफ जिहाद के लिए कुरान का हवाला देकर कहा कि एक काफिर कैसे मुसलमान के ऊपर राज कर सकता है इसकी कुरान हदीस और इस्लाम में सख्त मनाही है इतना ही नहीं उसने मुसलमान को गौ हत्या करने के लिए खुलकर उकसाया
उसके बाद कश्मीर में हिंदुओं और सिखों के खिलाफ व्यापक दंगे भड़क उठे सैकड़ो हिंदुओं और सिखों का कत्लेआम हुआ दस्तावेजों के अनुसार 80 से ज्यादा गांव में हिंदुओं की मकान दुकान संपत्ति जलाई गई कई जगह हिंदुओं और सिखों का धर्मांतरण कराया गया 40 से ज्यादा गुरुद्वारा और मंदिर जलाए गए
फिर उस जब महाराजा हरि सिंह ने गिरफ्तार कर लिया उसके ऊपर राजद्रोह लगा तब दंगे और भड़क गए और इतनी भयंकर दंगे भड़के की जेल परिसर के अंदर ही अदालत लगाकर सुनवाई होती थी
और 13 जुलाई 1931 को ऐसी ही एक सुनवाई थी फिर मुसलमानो की भीड़ ने अब्दुल कादिर के नेतृत्व में जेल परिसर पर हमला कर दिया और वह जज के चेंबर में घुसना चाहते थे कश्मीर में जगह-जगह भीड़ ने पुलिस पर हमला बोल दिया हिंदुओं के दुकान मकान लूट गए उसके बाद पुलिस ने गोली चलाई जिसमें यह यह दंगाई मारे गए
और हिंदुओं के खिलाफ इन दंगों को भड़काने में शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का भी बहुत बड़ा हाथ था जो फारूक अब्दुल्ला का पिता था उसे भी गिरफ्तार करके जेल भेजा गया था लेकिन उसने महाराजा हरि सिंह से माफीनामा लिखा और अगले साल महाराजा हरि सिंह ने उसे माफ कर दिया
लेकिन जेल से आने के बाद इसने ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस बनाकर मुसलमानो को भड़काना शुरू किया आजादी के बाद ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का नाम बदलकर नेशनल कांफ्रेंस कर दिया गया इन दंगों में जो अंग्रेज शासन के दस्तावेज में दर्ज है 32 हिंदू मंदिरों और 23 गुरुद्वारों को जलाया गया जिसमें कई देवी देवताओं की प्रतिमा खंडित हुई तमाम गुरु ग्रंथ साहिब जलाए गए दंगों में 600 जबरन इस्लामी धर्मांतरण के मामले सामने आए
दस्तावेज बताते हैं कि इन दंगो को कंट्रोल करने के लिए अंग्रेजी सरकार ने कुछ नहीं किया जबकि महाराजा हरि सिंह ने दंगों को कंट्रोल करने के लिए अंग्रेजों से मदद मांगी थी बल्कि अंग्रेज चाहते थे की महाराजा हरि सिंह का शासन इतना कमजोर हो जाए कि हम कश्मीर पर कब्जा कर लें..
सबसे ज्यादा हिंदुओं और सिखों को मीरपुर जो आज पाकिस्तान में है वहां नुकसान झेलना पड़ा अंग्रेजी दस्तावेज के अनुसार जहां-जहां दंगाई पहुंचे वहां स्थानीय मुस्लिम लोगों ने दंगाइयों का साथ दिया और अपने हिंदू और सिख पड़ोसियों को करने और उनके घर जलाने में उनके साथ दियाउसके बाद जब कश्मीर एक राज्य बना भारत आजाद हुआ तब कांग्रेस सरकार ने इन दंगाइयों को सम्मान देने के लिए 13 जुलाई को शहीदी दिवस मनाने का ऐलान किया..
प्रतिवर्ष में दंगाइयों के सम्मान में शहीदी दिवस मनाया जाता था लेकिन जब राष्ट्रप्रमी भारत सरकार सत्ता के केंद्र मै आई तब उन्होंने शहीदी दिवस मनाया जाने पर प्रतिबंध लगा दिया और उमर अब्दुल्ला इन दंगाइयों को श्रद्धांजलि देने के लिए दीवाल कूद कर गए..